Brihaspati Vrat Katha – गुरुवार व्रत की पूरी कथा

Introduction: बृहस्पति देव और गुरुवार व्रत का महत्व

हिन्दू धर्म में सप्ताह का प्रत्येक दिन किसी न किसी देवता को समर्पित है। इनमें गुरुवार (Thursday) का दिन देवगुरु बृहस्पति (Brihaspati Dev) को समर्पित माना गया है। बृहस्पति देव को ज्ञान, बुद्धि, धर्म, वैभव और विवाह-सुख के देवता कहा गया है।
जिनके जीवन में अवरोध, आर्थिक कठिनाइयाँ, विवाह में विलंब या मानसिक अशांति होती है, उन्हें Brihaspati Vrat रखने की सलाह दी जाती है।

पुराणों में उल्लेख है कि जो व्यक्ति श्रद्धा और नियमपूर्वक Brihaspati Dev ki Vrat Katha सुनता और पालन करता है, उसके जीवन में सुख, शांति और समृद्धि स्थायी रूप से प्रवेश करती है। 🌼

Brihaspati Vrat Katha
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Brihaspati Dev ki Vrat Katha (गुरुवार व्रत कथा)

बहुत समय पहले एक नगर में एक धार्मिक ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ रहता था। वह अत्यंत भक्तिमान था और प्रतिदिन पूजा-पाठ करता था। उसकी पत्नी भी ईश्वर-भक्त थी, परंतु भौतिक वस्तुओं की लालसा उसके मन में धीरे-धीरे बढ़ने लगी थी।

एक दिन ब्राह्मण की पत्नी ने देखा कि उसकी पड़ोसी के घर में बहुत धन और वैभव है। उसने सोचा, “मैं इतनी पूजा करती हूँ, फिर भी मेरे घर में अभाव क्यों?”
उसने अपने पति से कहा, “आप इतने धार्मिक हैं, फिर भी हमारे घर में सुख-सुविधाएँ क्यों नहीं हैं?”

ब्राह्मण ने शांत भाव से उत्तर दिया, “देवी, जो कुछ हमें मिला है, वही हमारा भाग्य है। हमें भगवान बृहस्पति पर श्रद्धा रखनी चाहिए।”
परंतु पत्नी को यह उत्तर पसंद नहीं आया।

अगले गुरुवार को जब ब्राह्मण Brihaspati Dev की पूजा करने जा रहा था, तो उसकी पत्नी ने घर में झाड़ू-पोंछा करने के बहाने पूजा का पीलापन मिटा दिया, और पूजा का प्रसाद भी फेंक दिया।
बृहस्पति देव को यह अपमान असह्य हुआ, और उन्होंने क्रोधित होकर कहा,
“हे स्त्री! तुमने आज मेरा अपमान किया है। अब तुम्हारे घर में कभी सुख नहीं रहेगा।”

कुछ ही दिनों में ब्राह्मण का सारा धन नष्ट हो गया, घर में दरिद्रता छा गई, और दोनों को नगर छोड़कर भटकना पड़ा।

भटकते-भटकते एक दिन वह स्त्री एक राजमहल में पहुंची। वहाँ राजा की सेवा के लिए नौकरानी की आवश्यकता थी। वह स्त्री वहाँ काम करने लगी।
कुछ दिनों बाद, राजकुमारी का विवाह तय हुआ। विवाह के अवसर पर पूरी नगरी में Brihaspati Vrat Katha सुनाई जा रही थी। वह स्त्री भी वहीं बैठी।

कथा सुनते ही उसे अपने पुराने पाप का स्मरण हुआ, और उसने आँसू बहाते हुए कहा,
“हे बृहस्पति देव! मुझसे गलती हुई, कृपया क्षमा करें।”

बृहस्पति देव उस पर प्रसन्न हुए और कहा,
“हे देवी! अब तुम हर गुरुवार श्रद्धा से मेरा व्रत करो। मैं तुम्हारे जीवन में फिर से सुख लौटाऊँगा।”

उसने व्रत किया, पीले वस्त्र धारण किए, केले का वृक्ष पूजित किया, और नियमपूर्वक कथा सुनी।
कुछ ही महीनों में उसका घर धन-धान्य से भर गया, और उसका पति भी वापस मिल गया।
इस प्रकार Brihaspati Dev ki Vrat Katha सुनने और पालन करने से उसके जीवन में पुनः सुख और समृद्धि लौट आई। 🌼

Brihaspati Vrat Vidhi – व्रत विधि

गुरुवार व्रत विधि (Brihaspati Vrat Vidhi) अत्यंत सरल और फलदायक है। इसे पूर्ण श्रद्धा से करने पर ही फल प्राप्त होता है।

आवश्यक सामग्री:

  • पीले वस्त्र
  • पीला फूल
  • चने की दाल
  • हल्दी और गुड़
  • केला और नारियल
  • दीपक और धूप
  • बृहस्पति देव की मूर्ति या चित्र
  • पीला वस्त्र, जल का कलश, सुपारी

पूजा विधि:

  1. सुबह जल्दी स्नान कर पीले वस्त्र धारण करें।
  2. पूजा स्थल को स्वच्छ करें और पीले वस्त्र से ढकें।
  3. बृहस्पति देव की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
  4. जल, फूल, चंदन, हल्दी, चने की दाल और गुड़ से पूजा करें।
  5. ॐ बृहस्पतये नमः” मंत्र का 108 बार जाप करें।
  6. Brihaspati Vrat Katha को श्रद्धा से सुनें या पढ़ें।
  7. केले के वृक्ष की पूजा करें और जल अर्पित करें।
  8. दिनभर व्रत रखें और केवल पीले पदार्थ जैसे – बेसन हलवा, चना, केला आदि ग्रहण करें।

व्रत के लाभ (Benefits of Brihaspati Vrat)

Brihaspati Dev का व्रत केवल भक्ति नहीं, बल्कि जीवन-संतुलन का उपाय भी है।

व्रत करने से मिलने वाले प्रमुख लाभ:

  • विवाह में आ रही बाधाएँ दूर होती हैं।
  • वैवाहिक जीवन में प्रेम और स्थिरता आती है।
  • आर्थिक स्थिति मजबूत होती है।
  • बुद्धि, ज्ञान और निर्णय-शक्ति में वृद्धि होती है।
  • घर में सुख, शांति और समृद्धि आती है।
  • ग्रहदोष, विशेष रूप से बृहस्पति ग्रह के दोष समाप्त होते हैं।

यह व्रत विशेष रूप से उन लोगों के लिए शुभ है जिनकी कुंडली में बृहस्पति कमजोर हो या गुरु चंडाल योग हो।

महत्वपूर्ण मंत्र (Mantra Section)

मुख्य मंत्र:

ॐ बृहस्पतये नमः

अन्य मंत्र:

देवानां च ऋषीणां च गुरुं कांचन सन्निभम्।
बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम्॥

गुरु मंत्र जाप:
“गुरवे सर्वलोकानां, भिषजे भवरोगिणाम्।
निधये सर्वविद्यानां, श्री बृहस्पतये नमः॥”

इन मंत्रों का जप करने से मन को शांति, बुद्धि में तेज, और जीवन में शुभता प्राप्त होती है।

निष्कर्ष (Conclusion)

Brihaspati Vrat केवल पूजा नहीं, बल्कि श्रद्धा, संयम और आत्मविश्वास का प्रतीक है।
जो व्यक्ति पूरे मन, भक्ति और नियमपूर्वक यह व्रत करता है, उसके जीवन में सुख, समृद्धि और वैवाहिक सौभाग्य स्थायी रूप से बस जाते हैं।

इस व्रत का सार यही है –

“श्रद्धा से किया गया छोटा कर्म भी, दिखावे से किए गए बड़े कर्म से श्रेष्ठ होता है।”

FAQs – अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

1. बृहस्पति देव का व्रत कब किया जाता है?

👉 यह व्रत हर गुरुवार को रखा जाता है। विशेष रूप से शुक्ल पक्ष के गुरुवार को व्रत करना शुभ माना जाता है।

2. Brihaspati Vrat Katha सुनने से क्या लाभ होता है?

👉 कथा सुनने से बृहस्पति देव प्रसन्न होते हैं और जीवन में सुख, वैभव, और वैवाहिक सुख की प्राप्ति होती है।

3. इस व्रत में क्या खाना चाहिए और क्या नहीं?

👉 व्रत के दिन पीले पदार्थ जैसे चना, केला, बेसन हलवा आदि ग्रहण करें।
नमक, मांस, प्याज, लहसुन और तेल से बनी वस्तुएँ न खाएँ।

4. Brihaspati Dev ki puja ka sahi samay kya hai?

👉 सूर्योदय के बाद सुबह के समय पूजा करना सबसे शुभ होता है।
यदि संभव हो तो गुरुवार प्रातः 6 से 9 बजे के बीच पूजा करें।

5. क्या महिलाएं भी गुरुवार व्रत कर सकती हैं?

👉 हाँ, स्त्रियाँ भी यह व्रत रख सकती हैं। इससे उन्हें सौभाग्य, वैवाहिक सुख और परिवार में स्थिरता प्राप्त होती है।


Brihaspati Vrat Katha सुनने और पालन करने से जीवन में दिव्य प्रकाश फैलता है।
आप भी इस गुरुवार से व्रत प्रारंभ करें और बृहस्पति देव की कृपा से अपने जीवन को ज्ञान, धन और सुख से भर दें।

🙏 ॐ बृहस्पतये नमः 🙏

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